Sunday, January 25, 2009

व्यसन से बचेगा, तो ही सृजन में लगेगा




  व्यसन से बचेगा, तो ही सृजन में लगेगा

समझदार मनुष्य की नासमझी 
आज समाज में चारों ओर से समृद्धि की बाढ़ है । लोग परिश्रम भी कर रहे हैं एवं राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में कुछ ऐसानॉलेज एकानामी का चक्र चला है कि हमारा ज्ञानमूलक समाज क्रमशः मध्यमवर्ग को समृद्ध बना रहा है । यह बात अलग है कि एक बहुत धनी वर्ग और ज्यादा धनी बन रहा है एवं एक बहुत गरीब वर्ग जिसके लिए शासन द्वारा कोई प्रयास नहीं किया गया और गरीब बनता चला जा रहा है । यह खाई पटने का नाम नहीं ले रही, बढ़ती चली जा रही है । नवधनाढ्य मध्यम वर्ग ऐसा है, जिसके बूते भारत की एक चमकती सी छवि दिखाई देती है, पर क्या कुछ मनुष्यगत दुर्बलताओं को देखते हुए यह चमक या तथाकथित समृद्धि स्थाई रह पायेगी, यह एक प्रश्नचिह्न है । यह दुर्बलता है बुद्धिमान समझे जाने वाले मनुष्य का नशों में लिप्त होकर अपने पैरों में स्वयं कुल्हाड़ी मारना, न करने योग्य करना, न खाने योग्य खाना, न पीने योग्य पीना । 

घातक घुन की तरह खोखला कर रहे व्यसन 
जैसे-जैसे क्रय क्षमता बढ़ती गई, पैसा उड़ाने की प्रवृत्ति भी बढ़ती चली गई । उसमें सबसे घातक है दुर्व्यसन-नशों का सेवन । विशेष रूप से युवा पीढ़ी द्वारा स्वयं को बर्बाद किया जाना । ऊर्जा से भरी हमारी युवा शक्ति धीरे-धीरे इसकी गिरफ्त में आकर स्वयं को छूँछ बना रही है । ये व्यसन घातक भी हैं, शरीर को घुन की तरह खाने वाले भी तथा क्रमशः जीवनीशक्ति का क्षय करके मौत के मुँह में ले जाने वाले । इनसे स्वास्थ्य पर होने वाला खर्च भी बढ़ता है तथा राष्ट्रीय स्तर पर एक ऐसा जनसमूह खड़ा हो जाता है, जो कार्यक्षमता की दृष्टि से अपंग है । व्यसनों में प्रमुख है-तम्बाकू । किसी भी रूप में इसका लिया जाना घातक है । इसके साथ शराब, स्मैक, एस्टेसी, हिरोइन, मेनड्रेक्स व अन्य दवाओं के रूप में प्रचलित ऐसे घातक दुर्व्यसन हैं, जो शरीर को खोखला बना रहे हैं । एक द्वार से पैसा कमाया जाता है, दूसरे द्वार से चला जाता है भारी मात्रा में नुकसान पहुँचाकर । 

देवालय को अपवित्र न करें 
मानवी काया एक देवालय है । इसके विषय में श्रीगीताजी में कहा गया है-यह नौ दरवाजों की आध्यात्मिक राजधानी है, जिसमें परमात्मा स्वयं विराजते हैं-नवद्वारे पुरे देही । फिर जब इस देवालय को प्रदूषित किया जाता है, जो मन में आये इसमें ठूंस दिया जाता है, तो यह मंदिर का अपमान नहीं है क्या? यह बार-बार सोचा जाना चाहिए कि जिस तरह हम अपने भगवान् के-इष्ट के मंदिर में कभी अपवित्र वस्तु नहीं रखेंगे, उसी तरह हमारी काया रूपी मंदिर को भी अपवित्र नहीं होने देंगे । विभूति रूप में स्वयं भगवान् जीवनीशक्ति रूप में हमारे अंदर विद्यमान हैं । उनका ही एक अंश हमारे अंदर है (ममैवांशो जीवलोके), फिर कैसे हमसे यह गलती हो जाती है कि हम इस काया के निर्माता से-अपने इष्ट आराध्य से ही खिलवाड़ कर बैठते हैं । 

व्यसन हमें खाते हैं, नष्ट कर डालते हैं 
तम्बाकू एक विषैला पदार्थ है । इसका उत्पादन तुच्छ औषधियों के निर्माण के लिए हुआ करता था । पुराने जमाने में हुक्का पीने की परंपरा थी, जिससे किसी की सामाजिक समृद्धि का पता लगता था । आज इसका एक नया अवतार आ गया है-साइबर कैफे या काफी हाऊस की तरह हुक्का कैफे । बड़े-बड़े नगरों में लोग हुक्का पीकर अपनी तलब मिटाते हैं । तम्बाकू खाना, इसे सूंघना, दाँतों-मसूड़ों पर रगड़ना, बीड़ी-सिगरेट रूप में इसे धूम्रपान में प्रयुक्त करना, पान मसाले या पान में जरदे के रूप में इसका सेवन करना, गुटका आदि का प्रचलन किसी भी स्थिति में किसी भी सभ्य समाज के लिए वर्जनीय होना चाहिए । यह मनुष्य की दुर्बलता ही है कि वह उसका सेवन आरंभ कर धीरे-धीरे इनका आदी हो जाता है । फिर तम्बाकू ही हमें खाती है-हम उसका सेवन करें, न करें; तलब ही सब कुछ कराती है । 

आज छोटे-छोटे स्कूल जाने वाले छात्रों से लेकर नागरिक किसान, फिल्मी हीरो की नकल कर रहे युवा, सिगार पीते समृद्धि का प्रतीक बनते कार्पोरेट वर्ल्ड के लोग अथवा पान का शौक रखने वाले सभी इस एडीक्शन का शिकार हो गये हैं । कैंसर जैसे अतिघातक और असाध्य रोग इसी के कारण होते हैं, यह जानते हुए भी लोग इस विष को क्यों अपनाते हैं, समझ में नहीं आता । स्वास्थ्य के लिए खतरनाक ऐसा लिखने से भी क्या किसी की समझ में आया । क्यों नहीं इस पर पूर्ण बैन लगता है, क्यों नहीं जनमानस जागता कि यह नशा राष्ट्र को खोखला बना रहा है । धुँआ उड़ाने वाले यह भी नहीं जानते किपैसिव स्मोकिंग के माध्यम से वे कितना नुकसान अन्य ऐसों का कर रहे हैं, जो नहीं पीते, पर जिन्हें यह धुँआ झेलना पड़ता है । एक क्षणिक उत्तेजना की परिणति कितने घातक रोगों में होती है, यह सबको ज्ञात है । 

जितने विश्वयुद्धों में न मरे, उतने शराब ने मारे 
तम्बाकू के अलावा जहरीली शराब, संभ्रान्त लोगों की शराब पार्टियाँ, डिस्कोथिक में होती पार्टियाँ जिनमें शराब के जाम जमकर छलकाये जाते हैं तथा धीमे नशे के रूप में हीरोइन, स्मैक, चरस और न जाने कितने नूतन संस्करणों का प्रयोग किया जाता है-जो उतने ही नुकासानकारी हैं । पिछले पाँच वर्षों में शराब की खपत बड़ी तेजी से बढ़ी है । भारत, नाइजीरिया, पाकिस्तान व अन्य हमारे पड़ौसी देशों के लिए ड्रग ट्रैफकिंग का एक महत्वपूर्ण केन्द्र बन गया है । गाँजा, चरस का प्रचलन कस्बों, गाँवों तक देखा जा सकता है । टेबलेट के रूप में नए संस्करण आ गये जो हमारे राष्ट्र के नागरिकों की शक्ति को दिवालिया बनाए दे रहे हैं । 

शहरों की कोई भी पार्टी, कोई भी खर्चीली शादी बिना शराब के नहीं होती । इसे स्टेटस सिम्बल से जोड़ दिया गया है और इसी कारण मध्यम वर्ग में व्हिस्की, रम, बीयर, वोडका, रेड वाइन का प्रयोग बड़ी तेजी से बढ़ा है । अल्कोहल किसी भी रूप में अन्य नशों के साथ मिलकर तो और भी ज्यादा घातक हो जाता है । न जाने कितने घर उजड़ गये, हमारे पहाड़ इसी नशे के कारण ढेरों युवा-विधवाओं से भरे हैं, फिर भी हमें होश नहीं आता । इंग्लैण्ड के एक पूर्व प्रधानमंत्री ने अपने व्याख्यान में कहा है कि जितना नुकसान हम सबके बीच हुए दो बड़े विश्वयुद्धों-छुटपुट युद्धों, महामारी और अकाल ने नहीं किया, उससे ज्यादा शराब ने किया है । 

गायत्री परिवार का एक प्रमुख आन्दोलन 
गायत्री परिवार ने नशा उन्मूलन-व्यसन मुक्ति आन्दोलन को एक प्रमुख संघर्षात्मक आंदोलन के रूप में लिया है । सारे विश्व में ढेरों संस्थायें इस संबंध में कार्य कर रही हैं, पर अपने देश में अभी भी बड़ा व्यापक अलख जगाने की आवश्यकता है । भारत जैसे शुद्ध शाकाहारी एवं अध्यात्म प्रधान देश में इस प्रवृत्ति का बढ़ते जाना एक खतरे की घंटी के समान देखा जाना चाहिए । विशेषकर तब, जब लोगों की क्रयशक्ति बढ़ रही है । यदि अर्जित धन इसी में खर्च हो गया, तो बचेगा कैसे? इसीलिएव्यसन से बचायें, सृजन में लगायें यह नारा हमने दिया है और इसे लोकशिक्षण के रूप में लोकव्यापी बनाने हेतु जो भी माध्यम ठीक हो, उसकी शरण में जाने के लिए सारे देश में एक आन्दोलन छेड़ा गया है । नशे की आदत एक मीठा-जहर है । यदि समय रहते रुक गई, तो हमारा इक्कीसवीं सदी का यह भारत सारे विश्व की महाशक्ति बन सकता है, इसमें कोई संशय नहीं है । 

रैली निकलें, प्रदर्शनियाँ लगें 
ऐसी प्रदर्शिनियों, स्लाइड शो, विज्ञापन फिल्मों को बनाकर सारे नेटवर्क तक पहुँचाने की आवश्यकता है, जिनके द्वारा लोकशिक्षण किया जा सके । नगरों में रैली निकाली जायें, जिनके समापन पर नशे की अर्थी जलाई जाये । प्रदर्शनों में जब तक उत्तेजना नहीं होगी, लोगों की समझ में नहीं आयेगा । कितना ज्यादा यह जनस्वास्थ्य एवं राष्ट्र की सशक्तता के लिए जरूरी है । जहाँ भी मेले हों, यज्ञायोजन हों, सम्मेलन हों, कुम्भ आदि बड़े कार्यक्रम हों, वहाँ नशा-उन्मूलन की एक प्रदर्शनी लगाई जानी चाहिए । शान्तिकुञ्ज हरिद्वार के मार्गदर्शन में एक विस्तृत प्रदर्शनी ऐसी बनी है, जिसे हर आयोजन में लगाया जाता है । हर कार्यशाला, कार्यकर्त्ता सम्मेलन, यज्ञायोजन में नशे के खिलाफ रैली को एक कार्यक्रम के रूप में स्वीकार कर जन-जागरण करने का प्रयास किया जाता है । यह रैली बड़ी ही सफल होती है । यदि विभिन्न धर्मों के संगठन, जातीय संघ, अन्य संस्थाएँ भी इसे हमारे साथ या अलग से संपन्न करने लगें, तो उसका बड़ा व्यापक प्रभाव होगा । नारीशक्ति ने सत्याग्रह आंदोलन द्वारा शराब की भट्टियों व दुकानों पर धरना देकर कई राज्यों में बड़े प्रेरक उदाहरण प्रस्तुत किये हैं । कानून कितने भी बन जायें, जब तक जनता जागेगी नहीं, उनका मखौल उड़ता ही रहेगा । 

देवदक्षिणा, नशा उन्मूलन क्लीनिक 
हमारी प्रदर्शनियों, सीडी, डीवीडी में दंतचिकित्सकों, कैंसर विशेषज्ञों एवं विभिन्न समाज विज्ञान के महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों ने अपने मन्तव्य व्यक्त किए हैं । उससे उनकी प्रामाणिकता असंदिग्ध हो गई है । जिन-जिनने नशे छोड़े उनको क्या लाभ मिला, यह भी सफलता की कहानियों के रूप में अगले दिनों हमें देना होगा । इससे कई को प्रेरणा मिलेगी, मनोबल बड़ेगा कि नशा छोड़ा भी जा सकता है । अल्कोहल एनानीमस जैसी संस्थाएँ बड़ा महत्वपूर्ण कार्य कर रही हैं । उसी शैली पर हर शक्तिपीठ एक नशा उन्मूलन क्लीनिक चला सकता है । यह द्विविध क्रान्ति होगी नशा उन्मूलन एवं स्वास्थ्य संवर्धन । गायत्री परिवार के यज्ञों में देवदक्षिणा ली जाती है । लाखों-करोड़ों व्यक्तियों ने नशे ही नहीं, मांसाहार भी छोड़ा है । अब वे देवत्व से भरा जीवन जी रहे हैं, यह बात भी हमारे परिजनों द्वारा जन-जन को बताई जानी चाहिए । 

आधे भारत को नशा मुक्त करना है 
समृद्धि के साथ आए नशे जैसे अभिशाप से यदि हम समय रहते लड़लें, तो हम उसका सुनियोजन भी कर पायेंगे । सबसे बड़ी जरूरत है लोकशिक्षण की-जनजागृति की, हानि-लाभों को विज्ञानसम्मत ढंग से बताने की, भगवान् का-परिवार का वास्ता देकर इस वृत्ति से मुक्ति दिलाने की । शताब्दी वर्ष तक क्या हम आधे भारत को नशामुक्त कर सकते हैं? एक आन्दोलन रूप में यदि हाथ में लिया गया, तो हमारा आध्यात्मिक संगठन अन्य संस्थाओं के साथ मिलकर यह कर सकता है ।

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