Sunday, January 25, 2009

युवा शक्ति जागरण

युवा शक्ति जागरण
युवा शक्ति जागरण

हमारा देश इन दिनों सर्वाधिक युवा-देश है । यही वह समय है, जब हम युवाओं का सशक्त मार्गदर्शन कर उन्हें युग निर्माण की सेना में भरती कर उनका सुनियोजन कर सकते हैं । आजादी के दिनों में जो तूफानी चक्रवात जन्मे थे, युवाओं ने अपने कैरियर को ताक पर रखकर देश के लिए अपने आपको बलि-वेदी पर चढ़ा दिया था, ठीक उसी तरह इन दिनों उससे पचास गुना अधिक तीव्र प्रवाह पैदा होना चाहिए । इन दिनों इस देश में लगभग चौवन करोड़ युवा हैं एवं उनमें से दस प्रतिशत(साढ़े पाँच करोड़) भी यदि विचार क्रांति के प्रवाह से जुड़ने की स्थिति में आ सकते हों, उन्हें हम दिशा देकर राष्ट्र निर्माण हेतु प्रवृत्त कर सकें, तो इनसे हम उम्मीद कर सकते हैं कि ये सशक्त सृजन की नींव बन सकेंगे । 

युवाओं में असीम शक्ति का प्रवाह होता है, प्रतिभा पराकाष्ठा पर होती है, आत्मा में परमात्म शक्ति का तेज होता है एवं बलिदानी साहस होता है । आज वे भटक रहे हैं, राजनीति के मोहरे बन रहे हैं एवं व्यसनों की गिरफ्त में आ रहे हैं । हमारा प्रयास होगा कि देव संस्कृति विश्वविद्यालय के जाग्रत प्राणवान छात्र-छात्राओं के माध्यम से-हमारे राष्ट्र में फैले युवामण्डलों, भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा के अग्रदूतों एवं संस्कृति मण्डलों के सदस्यों द्वारा हम युवाओं को अपने उद्देश्य से परिचित करायें एवं उन्हें इस आध्यात्मिक-सामाजिक आंदोलनों से जोड़ें । यह युवाशक्ति बिखरी पड़ी है । कई अपना तेजस्, बेरोजगारी के प्रवाह में खोते चले जा रहे हैं एवं असमय वार्धक्य के शिकार हो रहे हैं । 

ग्रामीण विकास, गो विज्ञान, एग्रोफोरेस्ट्री, जड़ी-बूटी उत्पाद, घरेलू उद्योगों के तंत्र द्वारा वैकल्पिक रोजगार की व्यवस्था कर इन्हें अपने पैरों पर खड़ा किया जा सकता है । आर्थिक निश्चिन्तता होने पर युवक-युवतियाँ पूरी तरह से एकाग्रचित्त हो विचार क्रांति अभियान में भागीदारी कर सकते हैं । यदि वे विवाह भी करते हों, तों उन्हें कहा जाएगा कि 2012 तक वे जिम्मेदारियाँ न बढ़ायें, यथासंभव संयम बरतें और अपनी शक्ति का नियोजन राष्ट्र के नवनिर्माण की बहुमुखी योजना के निमित्त करें । कोई आश्चर्य नहीं कि ये असंभव दिखने वाले कार्य सरल होते दिखाई पड़ने लगें; क्योंकि हमारे साथ युवावर्ग एवं संवेदना की प्रतिमूर्ति नारी-शक्ति साथ होगी । 

निश्चित ही आएगा-युग वसंत 
युवा शक्ति का अनुपात अभी अनुमानतः इस देश में चौवन करोड़ (54 करोड़) है । यह एक बहुत बड़ी संख्या है जो 10 से 35 वर्ष की आयु में से गुजर रहे हैं एवं हमारे इस राष्ट्र की आधारशिला ही नहीं, ज्ञानकोश भी हैं । भारतीय ज्ञान का परचम आज सारे विश्वभर में लहरा रहा है तो इन्हीं की वजह से । हम अभी से सक्रिय हैं कि सारे भारत के प्रत्येक जिले में युवा मण्डल सक्रिय हो जायँ, उनके क्षेत्रीय आंदोलन समूह बन जायँ तथा प्रान्तीय स्तर पर एक कार्यकारिणी का गठन हो जाय । यह संगठनात्मक पुरुषार्थ अत्यधिक अनिवार्य है, क्योंकि इसी के पश्चात वे योजनाएँ चलाई जा सकेंगी, जिनसे मिशन में युवारक्त भविष्य का नेतृत्व हाथ में लेता दिखाई देगा । 

सारे देश के विद्यालयों-महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों के साथ कार्पोरेट जगत-प्रबुद्ध वर्ग में यही युवाशक्ति वैज्ञानिक अध्यात्मवाद की क्रांति को आगे बढ़ाएगी । युवा नेतृत्व को हमेशा से बहकाया जाता रहा है एवं अपने अपने निहित स्वार्थों के लिए राजनीतिक पार्टियों ने उन्हें खिलौना बनाया है । मिशन का प्रयास होगा कि भाव संवेदना की धुरी पर वे चिरयुवा अपने आराध्य गुरुदेव का संदेश सुनें एवं उन्हीं के निर्धारणों को जन-जन तक ले जाने के लिए गतिशील हों । युवाशक्ति ने ही स्वातंत्र्य आंदोलन में महती भूमिका निभाई थी । हमें वर्तमान समय को उससे कमतर न मानकर पचास गुना महत्त्वपूर्ण मानना है, क्योंकि यही युवा अपनी प्रतिभा पराक्रम से नूतन सदी की आधारशिला रखेंगे । 2020 तक इन्हीं युवाओं को सारे राष्ट्र की राजनीति को-समाजतंत्र को परिशोधित कर आमूलचूल बदलना है । सारे विश्व के विश्वविद्यालयों व उद्योग जगत में भी यही युवा हमारी नूतन गायत्री को पहुँचायेंगे । 

हमारे देशा में उच्चशिक्षा बढ़ी है । पर यह अभी भी एकांगी एवं महँगी है । मैनेजमेण्ट आधारित शिक्षा द्वारा हर कोई पढ़कर प्रबधक, सी.ई.ओ. बन रातों-रात करोड़पति बनना चाह रहा है । यह उचित भी है, क्योंकि बहुत दिनों तक हमारा देश आर्थिक क्षेत्र में पिछड़ा रहा है । परंतु इससे एक आनुपातिक असंतुलन पैदा हो गया है । हमारे राष्ट्र के प्रमुख सेनापति हमारे प्रिय राष्ट्रपति जी की भी चिन्ता है एवं हम सबकी भी कि विज्ञान का महत्व क्यों कम होता जा रहा है । विज्ञान की ढेरों धाराएँ हैं, पर उनमें पढ़नेवालों तथा पढ़ाने वालों की संख्या अब कम होती जा रही है । 

चाहे वह स्पेस तकनीकी हो, ब्रह्माण्ड भौतिकी, मिसाइल विज्ञान, गणित अथवा चिकित्सा विज्ञान-अधिकतर प्रतिभावान छात्र अब ग्रेजुएशन कर एम.बी.ए. अथवा तकनीकी से जुड़े कोर्सों को अधिक महत्व देने लगे हैं या आय.ए.एस. आदि सिविल परीक्षाओं से जुड़कर भ्रष्ट राजनीति द्वारा संचालित तंत्र की एक कड़ी बनते जा रहे हैं । यह प्रतिभा का शोषण एवं दिशा हीन भटकाव है । कालेजों से विज्ञान क्रमशः कम होता जा रहा है । ज्यादा पैसा देने वाली शिक्षा की शरण ली जा रही है । जनचेतना जगाकर हमें विज्ञान का दीपक पूरे राष्ट्र के शिक्षा जगत में पुनः जलाना होगा । विज्ञान के क्षेत्र में भारत की मजबूती ही पूरे विश्व में उसे वैश्विक स्तर पर एक सशक्त आधार प्रदान करेगी । 

देव संस्कृति विश्वविद्यालय विगत छह वर्षों में एक क्रांतिकारी स्थापना बनकर उभरा है । उसके घटक महाविद्यालय अगले दो वर्षों में भारत के कोने-कोने में खुलने हैं । इनमें भी तकनीकी, शोध एवं विकास (आर एण्ड डी) आधारित शिक्षा का समावेश अगले दिनों होना है । इसी माध्यम से हम जनरुचि को परिष्कृत कर विज्ञान की ओर एवं तदुपरांत वैज्ञानिक अध्यात्मवाद की ओर मोड़ पायेंगे । आगामी चार वर्ष में देश में शिक्षा के क्षेत्र में यह एक क्रांतिकारी कार्य होना है कि जो शिक्षा से वंचित हैं, उन्हें शिक्षा मिले-शिक्षा-विद्या से जुड़े तथा स्वावलम्बन आधारित हो । साथ ही उच्च शिक्षा उच्च नौकरी आधारित न होकर उच्चतम स्तर के विज्ञान की विभिन्न धुरियों पर चले एवं वह वैज्ञानिक अध्यात्मवाद, शोधतंत्र के माध्यम से विश्वविद्यालयों में एक क्रांति लाए । राष्ट्रवादी विचारधारा तीव्रगति पकड़े । यदि यह हो सका तो ही हम एक मजबूत नींव अपने विकसित भारत की रख पायेंगे । 

कोई आश्चर्य नहीं कि हम देश की शिक्षानीति को प्रभावित करने-उसके निर्धारण में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने की स्थिति में अगले दिनों आ जायँ । यदि हमारे युवा सम्मेलनों की दिशा इस पर केन्द्रिरत रही, तो यह असंभव सा दिख पड़ने वाला कार्य भी संभव होने लगेगा । कुछ युवाओं को इसके लिए हमें पूर्णकालीन समयदानी के रूप में भी नियोजित करना होगा । 

विद्यालयों-महाविद्यालयों में हमें संस्कृति मण्डलों की तथा डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन (दिया) की स्थापना अगले दिनों करनी है । इसके द्वारा हम भावनात्मक नवनिर्माण को गति दे पायेंगे । केवल पढ़ाकू नहीं सृजनशील व्यक्तित्व संपन्न, समग्र युवाओं का निर्माण हमारा उद्देश्य होगा । महाविद्यालयों में फिर हड़तालें-संघर्ष-टकराव-अपराधीकरण-नशाखोरी न होकर राष्ट्र के रचनात्मक पुनरुत्थान की योजनाएँ बनने लगेंगी । सभी योग को जीवन का अंग बनाने लगेंगे । वीर्यवान युवा-तेजस्वी नायक स्तर के ये युवा हमारे 21वीं सदी के युग सैनिक होंगे । इनकी महत्वाकांक्षाएँ तब आध्यात्मिक स्तर की होंगी । राष्ट्र की आधी जनशक्ति नारी, उसमें भी युवतियाँ-किशोरियाँ जब इस युवा आंदोलन से जुड़कर अपनी शेष नारीशक्ति को पिछड़ेपन से उबारेंगी, तो मान लेना चाहिए कि देश की तीन चौथाई आबादी हमारी पकड़ में आएगी ।

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